सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राजस्थान के प्रमुख संत(Major Saints of Rajasthan)

 

राजस्थान के प्रमुख संत

राजस्थान के प्रमुख संतों में संत पीपा तथा संत सूरदास जी संत रज्जब जी संत धन्ना जी बालिन्द जी संत रैदास जी भक्त कवि दुर्लभ संत मावजी आदि प्रमुख संतो के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है


संत पीपा गागरोन

संत पीपा का जन्म गागरौन झालावाड़ नरेश कड़वा राव खींची चौहान के घर हुआ था। इनकी माता

का नाम लक्ष्मीवती था तथा इनके बचपन का नाम प्रताप सिंह  था । पीपाजी ने संत रामानंद से दीक्षा

ली तथा भागवत भक्ति का प्रचार किया । राजस्थान में भक्ति  आंदोलन की अलख जगाने वाले ये प्रथम

संत थे। दर्जी  समुदाय इन्हें अपना आराध्य मानता है पीपा ने गागरोन का प्रबंध सम्भालते हुए दिल्ली

  के सुल्तान फिरोज  शाह तुगलक को पराजित  किया था।  बाड़मेर के समदड़ी ग्राम में पीपा जी का

 भव्य मंदिर है जहा विशाल  मेला भरता है इसके अलावा मसूरिया एवं गागरोन में भी इनकी स्मृति  में

 मेले लगते हैं।

  

संत सुंदर दास जी  दौसा

दादू जी  के परम शिष्य श्री  सुंदर दास जी का जन्म दोसा में खंडेलवाल वैश्य परिवार में हुआ । इनके

पिता  श्री परमानंद शाह  चोखा थे दादूजी से दीक्षा लेकर इन्होंने उनके उपदेशों  का प्रचार किया  और

 कई ग्रंथों  की रचना की । सुंदर दास जी के 42 ग्रंथ  निर्गुण भक्ति  की अमूल्य निधि है। सुंदर दास

 जी जो की  संत कवियों  में एकमात्र सुशिक्षित  व काव्य मर्मज्ञ  रचनाकार थे इनकी कृतियां में

 धर्मोपदेश  व काव्यत्व का सुंदर  सामंजस्य है।उनकी ज्ञान, समृद्ध  ,बावनी ,बारह अष्टक, सवैयां आदि

  श्रेष्ठ रचनाएं हैं। इनका निधन संवत 1764 मैं सांगानेर  में हुआ । इनके मुख्य कार्यस्थल दौसा ,सांगानेर

 , नरायणा एवं फतेहपर शेखावाटी रहे। इन्होंने दादू पंथ में नागा साधु  वर्ग प्रारंभ किया ।


संत रज्जब जी, जयपुर

रज्जब जी का जन्म सांगानेर जयपुर में 16 वीं सदी में हुआ। विवाह  के लिए जाते समय दादू जी  के

उपदेश सुनकर ये उनके शिष्य बन गए। और जीवनभर दूल्हे के वेश में रहते हुए दादू के उपदेशों का

बखान किया । ''रज्जबवाणी एवं सर्वंगी '' इनके प्रमुख ग्रंथ हैं । इनका स्वर्गवास  सांगानेर में हुआ , जहाँ

  इनकी प्रधान गद्दी है।


संत धन्ना जी ,टोंक

संत रामानन्द के शिष्य संत धन्ना जी टोंक के निकट  धुवन ग्राम में सम्वत 1472 में एक जाट परिवार

में पैदा हुए। ये बचपन से ही ईश्वर भक्ति में लीन  रहते थे। ये संत रामानंद से दीक्षा लेकर धर्मोपदेश  

एवं भागवत भक्ति  का प्रचार करने लगे ।


संत चरण दास जी, मेवात

संत चरणदास मेवात के डेहरा ग्राम में पैदा हुए  ,जिन्होंने दिल्ली में जाकर अपना चरणदासी पंथ

  स्थापित किया । इनकी 21 रचनाएाँ हैं जिन में ज्ञान, योग, भक्ति , कर्म  और कृष्ण रचित  का दिव्य

 सांकेतिक वर्णन  है। इन्होंने नादिर  शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी  की थी। इनकी शिष्याएँ 

 ''दयाबाई और सहजो बाई'' सन 1683 से 1763 ई.का भी संत मत में बहुत सम्मान है। इनके ग्रंथ

 क्रमशः “दया बोध औऱ सहज प्रकाश” हैं। जिनमें गुरु की  महत्ता,नाम महात्मय अजपा जाप,जगत

 ,मिथ्यात्व आदि  विषय सरल  व प्रवाहमायी भाषा में व्यंजीत है।


भक्त कवि दुर्लभ , बागड़

संत दुर्लभ जी का जन्म  स. 1753 में वागड़ क्षेत्र में हुआ। इन्होंने कृष्णा भक्ति  के उपदेश दिए  तथा

लोगों को कृष्णलीला के रस अमतृ से सराबोर किया । बांसवाड़ा व डुंगरपुर को उन्होंने अपना कार्य

 क्षेत्र बनाया था। इन्हें राजस्थान का नर सिंह  भी कहते हैं।


संत रैदास जी

रामानंद के शिष्य  संत रैदास जी राजस्थान के नहीं थे परंतु इन्होंने अपना कुछ समय राजस्थान मेँ भी

बिताया था। ये जाती  से चमार थे। इन्होंने भी समाज में व्याप्त आडंबरों एवं भेदभाव का विरोध कर

निर्गुण  ब्रह्मा की भक्ति  का उपदेश दिया। ये मीरा के समय चित्तौड़ आए। इनकी छतरी चित्तौड़गढ़ के

 कुंभ श्याम मंदिर  के एक कोने में हैं। इनके उपदेश ''रैदास की परची'' ग्रंथ में हैं।


भक्त कवि   ईरसदास, बाड़मेर

इनका जन्म मालानी  परगने बाड़मेर के भादरेस ग्राम में चरण सूजा जी के यहा 1538 ईस्वी में हुआ

था। इनकी माता का नाम अमरबाई था। बाल्य काल  में ही इनके माता पिता  की मृत्यु हो  गयी थी

 इसलिए चाचा आष जी द्वारा इनकी शिक्षा - दीक्षा कराई गई। 14 वर्ष  की आयु में इनका विवाह देवल 

 बाई के साथ हो गया था। जिनकी मृत्यु 1559 ई. मैं  बिच्छू के डंक मारने से हो गई थी । ईरसदास ने

 डिंगल भाषा में सर्वोत्कृष्ट रचना ''गुण हरिरस'' की रचना की। इसमें कर्म ,भक्ति  एवं ज्ञान का लोक 

 वातावरण के अनुसार सुन्दर वर्णन  किया है। दुसरा प्रमुख ग्रंथ “देवियाणा” है। शक्ति उपासकों में

 इसकी महत्ता दुर्गा सप्तसती  के सम्मान है।अन्य रचनाए गुण वैराट,गुणनिन्दा स्तुति ,गुण -भगवंत ,हंस

 तथा आपण है। इनकी हालों -झालों री कुंडलियां ग्रन्थ वीर रस प्रधान है।


संत मावजी, डुंगरपुर

वागड़ प्रदेश के संत मावजी का जन्म डुंगरपुर जिले  की आसपुर तहसील  के सांवला- मामला  ग्राम में

 माघ शुक्ल  पंचमी सूत्र 14 एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। सन 1727 में इन्हें बेणेश्वर स्थान पर ज्ञान प्राप्त

 हुआ।बेणेश्वर धाम की स्थापना सोम माही जाखम नदियों के त्रिवेणी  संगम पर नवरातपुरा में मावजी ने

ही करवाई। इनका प्रमुख मंदिर एवं पीठ माही तट पर साबला  गांव में है। इन्होंने वागड़ी भाषा में कृष्ण

लीलाओं की रचना की जो चोपडा कहलाती  है।उन्होंने अछूतों का आदर किया। 

मुस्लिम  संत 

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ,अजमेर 

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती सन 1192 ई में मोहम्मद गौरी की सेना के साथ पृथ्वीराज तृतीय के समय भारत आए। 

 इनका जन्म पारस के एक गांव संजरी में पिता हजरत  ख्वाजा सैयद माता बीबी शाहिनूर के यहां हुआ। इन की दो

 पत्नियां थी। एक मुस्लिम तथा एक राजपूत। महमूद गोरी ने ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को सुल्तान -उल -हिंद की 

 उपाधि दी। अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह का निर्माण इल्तुतमिश ने करवाया था। इनका इंतकाल 1233 ई.

 में  अजमेर में हुआ था

 

 शेख हमीदुद्दीन  नागौरी


 प्रसिद्ध चिश्ती  संत शेख हमीदुद्दीन नागोरी नागौर राजस्थान में आकर बसे।  उन्होंने इल्तुतमिश द्वारा प्रदत्त शेख-

 उल- इस्लाम के पद को अस्वीकार कर दिया। यह केवल कृषि से जीविका चलाते थे। ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ने

 सुल्तान -उल- तरीकीन की उपाधि दी।  इनकी मृत्यु 1274 ईस्वी में हुई। भारत में अजमेर के बाद नागौर में दूसरा

 बड़ा उर्स हमीदुद्दीन नागोरी का लगता है। 


 नरहड़ के पीर

 इनका नाम हजरत शक्कर पीर बताया जाता है। इनकी दरगाह चिड़ावा झुंझुनू के पास नरहड़ गांव में है। यहां

 जन्माष्टमी के दिन उर्स  का मेला भरता है। यह बागड़ के धणी के रूप में प्रसिद्ध है। 


 पीर फखरुद्दीन

 यह दाऊदी बोहरा संप्रदाय के आराध्य पीर हैं गलियाकोट डूंगरपुर में इनकी दरगाह है जो दाऊदी बोहरा संप्रदाय

 का प्रमुख धार्मिक स्थल है। 

More Read




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

REET की तैयारी किस प्रकार करें

B.ed,व STC शिक्षित बेरोजगारों के लिए एक खुश खबरी ! हाल ही में  राजस्थान सरकार ने तृतीय  श्रेणी अध्यापक L1, L2 की विज्ञप्ति  जारी की !राजस्थान राज्य  में संचालित विद्यालयों की कुल संख्या 66044   है ! जिन  में   8583572 विद्यार्थी अध्य्यन कर  रहें ! इन सभी  विद्यार्थियों    को पढ़ाने के लिए।  विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों संख्या  वर्तमान में 437255 है !जो वर्तमान विद्यार्थियों   की संख्या को देखते हुए कम है  इस लिए राज्य सरकार ने एक विज्ञप्ति  जारी कर रिक्त पदों पर 31000 हजार शिक्षक  L1,L2 लगाने का निर्णय लिया है ! जिस के लिए उन्होंने 25 अप्रेल 2021 को रीट की परीक्षा आयोजित  करवाने का निर्णय लिया  है।    REET 2021 ऑनलाइन आवेदन फॉर्म  नवीनतम जानकारी के अनुसार 21.01.2021 राजस्थ आरईटी 2021 अधिसूचना (आउट) ऑनलाइन आवेदन 11 जनवरी 2015 से शुरू हो गया है…। आवेदन की अंतिम तिथि 08 फरवरी 2021 है…। परीक्षा की तारीख 25 अप्रैल 2021 होगी…। नीचे दिए गए विस्तृ...

कृषि उपजों का वितरण एंव उत्पादन

      कृषि उपजों का वितरण एंव उत्पादन  सम्पूर्ण भारत के समान राजस्थान की अर्थव्यवस्था भी मूलतः कृषि पर आधारित है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 49.53 प्रतिशत कृषि के उपयोग में आता है। कृषि उपजों का वितरण एंव उत्पादन                                         राजस्थान की जलवायु की अत्यधिक क्षेत्रीय विविधता होने के कारण यहाँ उत्पादित होने वाली कृषि उपजों में अत्यधिक विविधता है एक ओर शुष्क प्रदेशों में बाजरा की प्रधानता है तो पर्याप्त वर्षा वाले प्रदेशों में गेंहूँ ,जौ ,चावल,गन्ना उत्पादित हो रहे हैं। राज्य में उत्पादित कृषि उपजों को निम्न श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।      (1 ) खाद्यान्न उपजें      (2 ) तिलहन एंव दलहनी उपजें      (3 ) अन्य व्यापारिक मुद्रदायिनी उपजें  खाद्यान्न उपजें : गेंहूँ ,बाजरा ,मक्का ,जौ ,ज्वार और चावल प्रमुख      (1 ) गेंहूँ : राजस्थान गेंहूँ उत्पादन में...

राजस्थान का भूगोल ( मृदाएँ:- पटवार एंव रीट के मुख्य प्रश्न )