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राजस्थानी साहित्य की प्रमुख कृतियां(Major Works of Rajasthani Literature)

 

राजस्थानी साहित्य की प्रमुख कृतियां

               राजस्थानी साहित्य ई॰ सन् १००० से विभिन्न श्रेणीयों में लिखी गई है। लेकिन सर्वसम्मत रूप से यह  माना जाता है कि राजस्थानी साहित्य पर  कार्य सूरजमल मिश्रण की रचनाओं के बाद आरम्भ हुआ। उनका मुख्य कार्य वंश भास्कर और वीर सतसई में है। वंश भास्कर में राजपूत वंश के राजकुमारों का उल्लेख आता है  जिन्होंने राजपूताना का नेतृत्व किया।जो की वर्तमान में भारत एक राज्य  राजस्थान है। 




 सूर्यमल्ल मिश्रण  (मीसण) (संवत‌ 1872 विक्रमी - संवत्‌ 1925 विक्रमी बूँदी के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे। उन्होने वंश-भास्कर नामक पिंगल काव्य ग्रन्थ की रचना की जिसमें बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया गया है। वे चारणों की मीसण शाखा से सम्बद्ध रखते  थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के उद्बोधक कवि थे। वीरता के सम्पोषक इस वीररस के कवि को ‘वीर रसावतार’ कहा जाता है।


मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य में मुख्यतः काव्यात्मक है और यह सामान्यतः राजस्थान के वीरों की गाथाओं से भरपूर है।

पूर्व राजस्थानी साहित्य प्रमुखतः जैन संतो द्वारा रचित है। पूर्व राजस्थानी को मारू गुर्जर (या डिंगल) के रूप में जाना जाता है जो गुजराती भाषा के बहुत निकट है।


         जैन धर्म श्रमण परम्परा से निकला है तथा इसके प्रवर्तक हैं २४ तीर्थंकर, जिनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी हैं। जैन धर्म की अत्यन्त प्राचीनता सिद्ध करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेषकर पौराणिक साहित्यो में प्रचुर मात्रा में हैं। श्वेतांबर व दिगम्बर जैन पन्थ के दो सम्प्रदाय हैं, तथा इनके ग्रन्थ समयसार व तत्वार्थ सूत्र हैं। जैनों के प्रार्थना स्थल, जिनालय या मन्दिर कहलाते हैं। 

            डिंगल, जिसे प्राचीन राजस्थानी भाषा के नाम से भी जाना जाता है, नागरी लिपि में लिखी जाने वाली एक प्राचीन भारतीय भाषा है जिसमें गद्य के साथ-साथ काव्य में भी साहित्य है। यह बहुत उच्च स्वर की भाषा है और इसके काव्य उच्चारण लिए विशिष्ट शैली कीआवश्यकता होती है।डिंगल का  उपयोग राजस्थानगुजरातकच्छमालवा और सिंध सहित आसपास के क्षेत्रों में किया जाता था। अधिकांश डिंगल साहित्य की रचना चारणों द्वारा की गई है। डिंगल का उपयोग राजपूत और चारण युद्ध नायकों के मार्शल कारनामों की प्रशंसा करके युद्धों में सैनिकों को प्रेरित करने के लिए भी किया जाता था।


सम्पूर्ण राजस्थानी साहित्य के प्रमुख पाँच भाग  -


जैन साहित्य

जैन धर्मावलम्बियों यथा- जैन आचार्यों, मुनियों, यतियों एवं श्रावकों तथा जैन धर्म से प्रभावित साहित्यकारों द्वारा वृहद् मात्रा में रचा गया साहित्य जैन साहित्य कहलाता है। यह साहित्य विभिन्न प्राचीन मंदिरों के ग्रन्थागारों में विपुल मात्रा में संग्रहित है। यह साहित्य धार्मिक साहित्य है जो गद्य एवं पद्य दोनों में उपलब्ध होता है।


चारण साहित्य

चारण साहित्य मुख्यतः पद्य में रचा गया है। इसमें वीर रसात्मक कृतियों का बाहुल्य है।


ब्राह्मण साहित्य

राजस्थानी साहित्य में ब्राह्मण साहित्य अपेक्षाकृत कम मात्रा में उपलब्ध होता है। कान्हड़दे प्रबन्ध, हम्मीरायण, बीसलदेव रासौ, रणमल छंद आदि प्रमुख ग्रन्थ इस श्रेणी के ग्रन्थ हैं।


संत साहित्य

मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन की धारा में राजस्थान की शांत एवं सौम्य जलवायु में इस भू-भाग पर अनेक निर्गुणी एवं सगुणी संत-महात्माओं का आविर्भाव हुआ। इन उदारमन संतों ने ईश्वर भक्ति में एवं जन-सामान्य के कल्याणार्थ विपुल साहित्य की रचना यहाँ की लोक भाषा में की है। संत साहित्य अधिकांशतः पद्यमय ही है।


लोक साहित्य

राजस्थानी साहित्य में सामान्य जन द्वारा प्रचलित लोक शैली में रचे गये साहित्य की भी अपार ख्याति  विद्यमान है। यह साहित्य लोक गाथाओंलोकनाट्यों, प्रेमाख्यानोंकहावतोंपहेलियों एवं लोक गीतों के रूप में विद्यमान है।



प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त परिचय

1. पृथ्वीराज रासौ: -(चन्दबरदाई) : इसमें अजमेर के अन्तिम चौहान सम्राटपृथ्वीराज चौहान तृतीय के जीवन चरित्र एवं युद्धों का वर्णन है। यह पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है। माना जाता है कि चन्द बरदाई पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि एवं मित्र थे।


2. खुमाण रासौ:- ( दलपत विजय ) : पिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में मेवाड़ के बप्पा रावल से लेकर महाराजा राजसिंह तक के मेवाड़ शासकों का वर्णन है।


3. विरूद छतहरी, किरतार बावनौ:- (कवि दुरसा आढ़ा) : विरूद् छतहरी महाराणा प्रताप को शौर्य गाथा है और किरतार बावनौ में उस समय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बतलाया गया है। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे। इनकी पीतल की बनी मूर्ति अचलगढ़ के अचलेश्वर मंदिर में विद्यमान है।


4. बीकानेर रां राठौड़ा री ख्यात:- (दयालदास सिंढायच) : दो खंडोे के ग्रन्थ में जोधपुर एवं बीकानेर के राठौड़ों के प्रारंम्भ से लेकर बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह के राज्यभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन है।


5. सगत रासौ:- (गिरधर आसिया) : इस डिंगल ग्रन्थ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह का वर्णन है। यह 943 छंदों का प्रबंध काव्य है। कुछ पुस्तकों में इसका नाम सगतसिंह रासौ भी मिलता है।


6. हम्मीर रासौ:- (जोधराज: इस काव्य ग्रन्थ में रणथम्भौर शासक राणा चौहान की वंशावली अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध एवं उनकी वीरता आदि का विस्तृत वर्णन है।


7. पृथ्वीराज विजय:- (जयानक) : संस्कृत भाषा के इस काव्य ग्रन्थ में पृथ्वीराज चैहान के वंशक्रम एवं उनकी उपलब्धियाँ का वर्णन किया गया है। इसमें अजमेर के विकास एवं परिवेश की प्रामाणिक जानकारी है।


8. अजीतोदय:- (जगजीवन भट्ट: मुगल संबंधों का विस्तृत वर्णन है। यह संस्कृत भाषा में है।


9. ढोला मारू रा दूहा (कवि कल्लोल: डिंगलभाषा के शृंगार रस से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में ढोला एवं मारवणी का प्रेमाख्यान है।


10. गजगुणरूपक:- (कविया करणीदान) : इसमें जोधपुर के महाराजा गजराज सिंह के राज्य वैभव तीर्थयात्रा एवं युद्धों का वर्णन है। गाडण जोधपुर महाराजा गजराज सिंह के प्रिय कवि थे।


11. सूरज प्रकास:- (कविया करणीदान) : इसमें जोधपुर के राठौड़ वंश के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है। साथ ही अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाँ के मध्य युद्ध एवं अभयसिंह की विजय का वर्णन है।


12. एकलिंग महात्म्य:- (कान्हा व्यास) : यह गुहिल शासकों की वंशावाली एवं मेवाड़ के राजनैतिक सामाजिक संगठन की जानकारी प्रदान करता है।


13. मूता नैणसी री ख्यात तथा मारवाड़ रा परगना री विगत:- (मुहणौत नैणसी) : जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के दीवान नैणसी की इस कृति में राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास के साथ-साथ समीपवर्ती रियासतों (गुजरात, काठियावाड़, बघेलखंड आदि) के इतिहास पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। नैणसी को राजपूताने काअबुल फ़जलभी कहा गया है। 'मारवाड़ रा परगना री विगत' को 'राजस्थान का गजेटियर' कह सकते हैं।

14. पद्मावत:- (मलिक मोहम्मद जायसी) : 1543 , लगभग रचित इस महाकाव्य में अलाउद्दीन खिलजी एवं मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की इच्छा का वर्णन है।


15. विजयपाल रासौ:- (नल्ल सिंह) : पिंगल भाषा के इस वीर-रसात्मक ग्रन्थ में विजयगढ़ (करौली) के यदुवंशी राजा विजयपाल की दिग्विजय एवं पंग लड़ाई का वर्णन है। नल्लसिंह सिरोहिया शाखा का भाट था और वह विजयगढ़ के ययुवंशी नरेश विजयपाल का आश्रित कवि था।


16. नागर समुच्चय:- (भक्त नागरीदास) : यह ग्रन्थ किशनगढ़ के राजा सावंतसिंह (नागरीदास) की विभित्र रचनाओं का संग्रह है सावंतसिंह ने राधाकृष्ण की प्रेमलीला विषयक श्रृंगार रसात्मक रचनाएँ की थी।


17. हम्मीर महाकाव्य:- (नयनचन्द्र सूरिसंस्कृत भाषा के इस ग्रन्थ में जैन मुनि नयनचन्द्र सूरि ने रणथम्भौर के चौहान शासकों का वर्णन किया है।


18. वेलि किसन रुक्मणी री:- (पृथ्वीराज राठौड़) : अकबर के नवरत्नों में से कवि पृथ्वीराज बीकानेर शासक रायसिंह के छोटे भाई तथापीथलनाम से साहित्य रचना करते थे। इन्होंने इस ग्रन्थ में श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी के विवाह की कथा का वर्णन किया है। दुरसा आढ़ा ने इस ग्रन्थ को 'पाँचवा वेद' '१९वाँ पुराण' कहा है।


19. कान्हड़दे प्रबन्ध:- (पद्मनाभ: पद्मनाभ जालौर शासक अखैराज के दरबारी कवि थे। इस ग्रन्थ में इन्होंने जालौर के वीर शासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए यु़द्ध एवं कान्हड़दे के पुत्र वीरमदे अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया हे।


20. राजरूपक:- (वीरभाण: इस डिंगल ग्रन्थ में जोधपुर महाराजा अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाँ के मध्य युद्ध (1787 ,) का वर्णन है।


21. बिहारी सतसई:- (महाकवि बिहारी) : मध्यप्रदेश में जन्में कविवर बिहारी जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। ब्रजभाषा में रचित इनका यह प्रसिद्ध ग्रन्थ शृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है।


22. बाँकीदास री ख्यात:- (बाँकीदास) (1838-90 ,) : जोधपुर के राजा मानसिंह के काव्य गुरू बाँकीदास द्वारा रचित यह ख्यात राजस्थान का इतिहास जानने का स्त्रोत है। इनके ग्रन्थों का संग्रहबाँकीदास ग्रन्थवलीके नाम से प्रकाशित है। इनकें अन्य ग्रन्थ मानजसोमण्डल दातार बावनी भी है।


23. कुवलमयाला:- (उद्योतन सूरी: इस प्राकृत ग्रन्थ की रचना उद्योतन सूरी ने जालौर में रहकर 778 , के आसपास की थी जो तत्कालीन राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन की अच्छी झाकी प्रस्तुत करता है।


24. ब्रजनिधि ग्रन्थावली:- यह जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह द्वारा रचित काव्य ग्रन्थों का संकलन है।


25. हम्मीद हठ :- बूंदी शासन राव सुर्जन के आश्रित कवि चन्द्रशेखर द्वारा रचित।


26. प्राचीन लिपिमाला, राजपुताने का इतिहास:- (पंगौरीशंकर हीराचंद ओझा) : पं. गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा भारतीय इतिहास साहित्य के पुरीधा थे, जिन्होंने हिन्दी में सर्वप्रथम भारतीय लिपि का शास्त्र लेखन कर अपना नाम गिनीज बुक मे लिखवाया। इन्होंने राजस्थान के देशी राज्यों का इतिहास भी लिखा है। इनका जन्म सिरोही रियासत में 1863 . में हुआ था।


27. वचनिया राठौड़ रतन सिंह महे सदासोत री:- (जग्गा खिड़िया: इस डिंगल ग्रंथ में जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना एवं शाहजहाँ के विद्रोही पुत्र औरंगजेब मुराद की संयुक्त सेना के बीच धरमत (उज्जैन, मध्यप्रदेश) के युद्ध में राठौड़ रतनसिंह के वीरतापूर्ण युद्ध एवं बलिदान का वर्णन हे।


28. बीसलदेव रासौ:- (नरपति नाल्ह: इसमें अजमेर के चौहान शासक बीसलदेव (विग्रहरा चतुर्थ) एवं उनकी रानी राजमती की प्रेमगाथा का वर्णन है।


29. रणमल छंद:- (श्रीधर व्यास) : इनमें पाटन के सूबेदार जफर खाँ एवं इडर के राठौड़ राजा रणमल के मध्य युद्ध (संवर्त 1454) का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती इनकी अन्य रचना है। श्रीधर व्यास राजा रणमल का समकालीन था।


30. अचलदास खींची री वचनीका:- (शिवदास गाडण: सन् 1430-35 के मध्य रचित इस डिंगल ग्रन्थ में मांडू के सुल्तान हौशंगशाह एवं गागरौन के शासक अचलदास खींची के मध्य हुए युद्ध (1423 .) का वर्णन है एवं खींची शासकों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है।


31. राव जैतसी रो छंद :-(बीठू सूजाजी) : डिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में बाधर के पुत्र कामरान एवं बीकानेर नरेश राव जैतसी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है।


32. रूक्मणी हरण, नागदमण :-(सायांजी झूला) : ईडन नेरश राव कल्याणमल के आश्रित कवि सायाजी द्वारा इन डिंगल ग्रन्थों की रचना की गई।


33. वंश भास्कर:- (सूर्यमल्ल मिश्रण) (1815-1868 .) - वंश भास्कर को पूर्ण करने का कार्य इनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। इनके अन्य ग्रन्थ है -बलवंत विलास, वीर सतसई छंद-मयूख उम्मेदसिंह चरित्र, बुद्धसिंह चरित्र।


34. वीरविनोद:- (कविराज श्यामलदास) : मेवाड़ (वर्तमाान भीलवाड़ा) में 1836 . में जन्में एवं महाराण सज्जन के आश्रित कविराज श्यामलदास द्वारा पाँच खंडों में रचित इास ग्रन्थ पर कविराज की ब्रिटिश सरकार द्वाराकेसर--हिन्दकी उपाधि प्रदान की गई। इस ग्रन्थ में मेंवाड़ के विस्तृत इतिहास वृृत्त सहित अन्य संबंधित रियासतों का भी इतिहास वर्णन है। मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने श्यामलदास कोकविराजएवं सन् 1888 मेंमहामहोपाध्याय की उपाधि से विभूषित किया था।


35. चेतावणी रा चुँगट्या :-(केसरी सिंह बारहट: इन दोहों के माध्यम से कवि केसरीसिंह बारहठ ने मेवाड के स्वाभिमानी महाराजा फतेहसिंह को 1903 , के दिल्ली में जाने से रोका था। ये मेवाड़ के राज्य कवि थे।

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