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राजस्थान के जिले ,मुख्यालय ,क्षेत्रफल ,जनसंख्या तथा मंडल

राजस्थान के  जिले ,मुख्यालय ,क्षेत्रफल ,जनसंख्या तथा मंडल राजस्थान राज्य की मुख्य जानकारी    राजस्थान के प्रमुख दुर्ग            भारत विश्व का एक ऐसा देश है। जिसमें सबसे पुराणी सभ्यताओं का समावेश है। जो बहुरंगी विविधता में एकता और समृद्ध सांस्कृति की विरासत रखे हुए है। इसके साथ ही बदलते हुए। समय के साथ  अपने आप को परिस्थितियों वश ढालते हुए रहता है। आजादी मिलने के बाद चहुंमुखी सामाजिक और आर्थिक विकास की प्रगति कर विश्व अपनी एक अलग पहचान बनाई। इसके साथ ही कृषि में आत्मनिर्भर बना और अब औद्योगिक क्षेत्र में एशिया अपनी अहम भूमिका रखता है।भारत एक  राज्यों का एक संघ, भारत एक सम्प्रभुता  सम्पन्न, धर्मनिरेपक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है जिसमें संसदीय प्रणाली की सरकार है। राष्ट्रपति इस संघ की कार्यकारिणी का संवैधानिक प्रमुख है। राज्यों में अपनी -अपनी सरकारें हैं। सरकार की प्रणाली केन्द्र सरकार की प्रणाली से बिल्कुल मेल खाती है। देश में 28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्र हैं। उनमें से एक राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है (क्षेत्रफल के अनुसार )  जिसका क्षेत्रफल ( 342,239  किलोमीटर )  है। राजस्थान में

बालविकास के सिद्धांत एंव इसके अभिप्रेत

 बालविकास के सिद्धांत एंव इसके अभिप्रेत  परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत   निरंतरता का सिद्धांत   व्यक्तिगत भिन्नता  सिद्धांत  निरंतरता या सतत विकास का  सिद्धांत   विकास की दिशा  सिद्धांत   वि कास एक सतत प्रक्रिया है व्यक्तिक अंतर का सिद्धांत   वातावरण और वंशानुक्रम के सिद्धांत   परस्पर विकास का  सिद्धांत समान प्रतिमान का  सिद्धांत   मनुष्य का विकास और उसमे होने वाले  शारीरिक  और  मानसिक परिवर्तनों की एक जंजीर है। जो भ्रूणावस्था के आरम्भ होने से लेकर वृद्धावस्था तक चलता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। बालक के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। विकास हमेशा एक निश्चित दिशा में होता रहता है। तथा यह सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है। विकास व्यक्ति में नवीन योग्यताएं एवं विशिष्टताएं लाता है। ये सारे विकास ,एक निश्चित नियम के अनुपालन में होते रहते है। इन सब प्रक्रियाओं को ही बाल विकास का सिद्धांत कहा जाता है। बाल विकास के सिद्धांत यहां निम्नप्रकार से दर्शाये  गए  हैं।     परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत  :किशोरावस्था में  शरीर के साथ साथ संवेगात्मक , सामाजिक , संज्ञानात्मक एवं क्रियात